जयपुर। राजस्थान विश्वद्यालय में छात्रसंघ चुनावों का शंखनाद हो चुका है। आज NSUI की ओर से Ritu Barala को छात्रसंघ अध्यक्ष प्रत्याशी घोषित करने के बाद पूरे विश्वविद्यालय में कई दिनोंं से चला आ रहा खुशनुमा माहौल बदल सा गया है। बागी सुर सामने आ गए हैं। कल तक अपने हर इंटरव्यू में मंत्री पुत्री Niharika Jorwal जहां टिकट मिलने के सबसे मजबूत दावे कर रही थी आज बागी हो गई। अभी इस बात को चौबीस घंटे भी नहीं गुजरे थे, जब निहारिका ने कहा था कि टिकट नहीं मिली, तो भी मैं NSUI का साथ दूंगी। लेकिन कहावत सही होती नजर आई कि ‘नेता और नेतागिरी समय और मौसम का मिजाज देख कर पल्टी मार ही जाते हैं।’
भले निहारिका ने बगावत कर दी हो। लेकिन निहारिका को चुनावी मैदान में कमजोर आंकना गलत साबित हो सकता है। निहारिका बीते काफी दिनों से चर्चा में हैं। Ritu Barala भी चर्चा में हैं। रितु इससे पहले महारनी कॉलेज की अध्यक्ष भी रह चुकी हैं और छात्र राजनीति में नई नहीं हैं। लेकिन फिलहाल अध्यक्ष पद के लिए लगने वाली भीड़ में निर्दलीय Niharika Jorwal, Nirmal Choudhary, NSUI की Ritu Barala और ABVP के Narendra Yadav मजबूत प्रत्याशी नजर आ रहे हैं।
Nirmal Choudhary को ही लें, तो विधायक Mukesh Bhakar का उन्हें बैकअप है, जो कमजोर नहीं है। फंडिंग, वर्किंग, टीम, इलेक्शन मैनेजमेंट और ब्रांडिंग के जरिए निर्मल चौधरी नजरों में बने रहने में सफल हैं। स्टूडेंट्स के मुद्दे उठाते रहे हैं। रैलियां, माहौल और जलवा दिखाना जानते हैं। वहीं निहारिका के पिता Murarilal Meena वर्तमान सरकार में मंत्री हैं। बेटी को भविष्य में राजनीतिक विरासत सौंपने और आगे लाने के लिए हर तरह से जोर लगाएंगे। क्योंकि राजस्थान विश्वविद्यालय ने बड़ी संख्या में विधायक और मंत्री राजस्थान को दिए हैं।
ABVP क्या गुल खिलाएगी और किसका रायता फैलाएगी यह देखने वाली बात होगी। फिलहाल ABVP में भी तीन दावेदारों Manu Dhadhich, Rahul Meena और Narendra Yadav में यादव ने बाजी मार कर टिकट हथिया ली है। देखना यह होगा कि ऐसे में मनु दाधीच और राहुल मीणा टिकट नहीं मिलने की बात को कितना पचा पाएंगे और नहीं पचा पाए तो नरेन्द्र यादव का कितना रायता फैलाएंगे।
हालांकि इस बात को भी खारिज नहीं किया जा सकता कि विश्वविद्यालय के वोटर्स में एबीवीपी या एनएसयूआई से ज्यादा निर्दलियों के प्रति सिंपैथी देखी जाती रही है। यह भी कह सकते हैं कि निर्दलीय या तो बागी निकल कर आते हैं या कोई अच्छा वर्कर जो विद्यार्थियों के लिए दिन-रात विश्वविद्यालय में जूझता नजर आता हो। बहरहाल मामला जो भी हो, दिलचस्प होगा। दंगल दम भर रहा है इसलिए हंगामा और बगावती तेवर तो लाजमी है। लेकिन पार्टियों के बीच सबकी निगाहें निहारिका जोरवार और निर्मल चौधरी पर जरूर रहेंगी। हो सकता है जालौर प्रकरण का असर दिखे और एससी-एससटी वोटर्स निहारिका के लिए एकजुट होकर जिताने के लिए जुट जाएं, वहीं इस बात की भी संभावना बन सकती है कि पार्टियों से इतर निहारिका को निर्मल चौधरी चैलेंज करते नजर आएं। क्योंकि निर्मल चौधरी भी जीत के मजबूत दावेदारों में से एक हैं। जाट वोट बैंक विश्वविद्यालय की राजनीति को न केवल अध्यक्ष देता रहा है बल्कि बड़े स्तर पर प्रभावित भी करता रहा है।
टक्कर किसकी होगी समय बताएगा। लेकिन फिलहाल तो पार्टियों के कैंडीडेट रितु बराला और नरेन्द्र यादव के इतर निर्दलीय निहारिका और निर्मल चौधरी की गूंज कैंपस में भारी पड़ रही है। फिर बीते चार चुनावों में तो युवाओं ने पार्टियों को जिताने की बजाय निर्दलीय प्रत्याशियों पर ही भरोसा जताया था। ऐसे में देखना होगा कि पांचवी बार भी निर्दलीय ही यहां बाजी मारेगा या नहीं।
– अमित कुमार