जयपुर। आरएएस मेंस की तारीख बढ़ाने का आंदोलन राजस्थान में भाजपा की नई-नवेली सरकार के लिए सिरदर्द बन गया है। राजस्थान विश्वविद्यालय में धरने के मात्र तीसरे दिन रात के अंधेरे का मौका देख, पुलिस आ धमकी। लेकिन सरकार के इशारों पर देर रात होने वाली ऐसी कार्रवाईयां सरकार में मची खलबली जाहिर करती आई हैं। इसी खलबली का एक और नमूना तब देखने को मिला जब, रात में सो रहे प्रदर्शनकारियों को पुलिस अधिकारी ने आकर शांति भंग करने की बात कही। पुलिसवालों ने केस में फंसने का हवाला देकर जगह छोडऩे का दबाव बनाया, और विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा धरने के खिलाफ पुलिस शिकायत की बात कही।
इसी गहमागहमी के बीच राजस्थान विश्वविद्यालय के अध्यक्ष निर्मल चौधरी आ डटे। निर्मल ने पूरे आंदोलन की देर रात कमान संभाली और आरएएस अप्रेंटिस को धरने पर बैठे रहने और पुलिसवालों को धरना स्थल से लौटने को कहा। इधर पुलिसवाले लगातार अशांति फैलाने की बात करते रहे, तो निर्मल चौधरी भी उन्हें कहते नजर आए कि आप चाहते हो कि अशांति फैले, तो बताओ, लेकिन शांतिपूर्वक अपने हक के लिए धरना दे रहे स्टूडेंट्स को विश्वविद्यालय से हटा नहीं सकते।
गौरतलब है कि इस धरने में बहुत से अप्रेंटिस तो ऐसे भी हैं, तो राजस्थान विश्वविद्यालय में पढ़ाई भी कर रहे हैं, और यहीं हॉस्टल्स में रह भी रहे हैं। लेकिन अपने ही हक के लिए अपने ही कैंपस में धरना देना सरकार को नागवार गुजर रहा है।
दिन में शिक्षा मंत्री आए, रात में पुलिस का डंडा
इधर शुक्रवार को दिन में शिक्षा मंत्री मदन दिलावर धरना स्थल पर आए और स्टूडेंट्स से मिले थे, तो उसके बाद सरकार की ओर से सकारात्मक रुख और मदद की आस बंधी थी। दिन में मंत्री डॉ. किरोड़ीलाल मीणा ने भी एक साक्षात्कार में इस बात को खुलकर कहा था कि वह खुद मुख्यमंत्री से इस बारे में बात भी कर चुके हैं और एक प्रतिनिधि मण्डल को मुख्यमंत्री से मिलवा भी चुके हैं। किरोड़ी ने सरकार के सकारात्मक रुख का इशारा भी किया था, लेकिन देर रात सो रहे प्रदर्शनकारियों को जगाकर पुलिसकर्मियों द्वारा धमकाने के वीडिय़ो वायरल होने से माहौल कितना तनावपूर्ण हो रखा है, जग-जाहिर हो गया।
हक के लिए निर्मल चौधरी मैदान में डटे
इधर युवा नेता और विश्वविद्यालय के अध्यक्ष निर्मल चौधरी धरना प्रदर्शनकारियों के बीच पूरी रात बैठे रहे और बेझिझक धरना चालू रखने का आश्वाासन दिया। निर्मल के अनुसार विश्वविद्यालय प्रशासन ने उन्हें नहीं चुना है, बल्कि विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राओं ने उनके हितों की रक्षा के लिए चुनकर भेजा है, तो ऐसे में विश्वविद्यालय में प्रदर्शन रोका नहीं जा सकता, यह मामला छात्र हितों का है।
अब देखने वाली बात होगी, की एक छोटे से हां या ना के फैसले के इंतजार में धरना कितना लंबा खिंचता है। लेकिन एक बात तय है कि इस तरह के धरने पिछली कांग्रेस सरकार में भी युवाओं ने लगातार किए थे और इसी तरह सरकार की जमकर फजीती हुई थी। अब युवाओं के बीच सरकार ने आते ही इमेज बिल्डिंग की जगह इमेज कॉलेप्स करवानी शुरू कर दी है, जिसका नुकसान लोकसभा में भी सरकार को उठाना पड़ सकता है।