चुरू। अपनी राजनीतिक जमीन बचाने की जिद और जद्दोजहद के बीच अब राहुल कस्वां का चुरू से लोकसभा चुनाव कांग्रेस के उम्मीदवार के तौर पर लडऩा तय हो गया है। कस्वां का राजेन्द्र राठौड़ ने टिकट कटवा दिया था, जिसको लेकर राहुल ने मुखर होकर अपना विरोध भी जता दिया था। राठौड़ ने कस्वां की टिकट कटवाकर राहुल कस्वां और कस्वां परिवार का राजनीतिक करियर खत्म करने की तैयारी कर दी थी, लेकिन अब उसी अस्तित्व को बचाने कस्वां ने कांग्रेस का हाथ थाम लिया है। मात्र आधिकारिक घोषणा बाकी है। आज रात राहुल गांधी न्याय यात्रा के बीच दिल्ली पहुंच गए हैं, और दिन में एक कार्यक्रम में राहुल को कांग्रेस में शामिल करेंगे।
टिकट कटने से नाराज से राहुल कस्वां
भाजपा की पहली सूची में राजस्थान के 15 प्रत्याशियों के नाम सामने आ गए थे और चुरू में देवेन्द्र झाझडिय़ा को टिकट दिलाकर राठौड़ ने राजनीतिक समीकरण पूरी तरह बदल दिए थे। राहुल कस्वां को भी अंदाजा नहीं था कि ऐसा हो जाएगा। राहुल उस समय चुरू में चुनाव की तैयारियों में ही व्यस्त थे। ऐसे में टिकट कटते ही राहुल और उनका परिवार सकते में आ गया। भाजपा का विरोध कर निर्दलीय चुनाव लडऩा चुरू से संभव नहीं था और चुरू छोडक़र झुंझुनूं जाकर लडऩा समझदारी नहीं थी। क्योंकि पार्टी चुरू से फैसला बदलने को तैयार नहीं थी और झुंझुनूं से टिकट का दिलासा राहुल को दिया गया था, जैसा बताया जा रहा था। इन सबके बीच राहुल के लिए अपनी राजनीतिक जमीन बचाने का यही एक विकल्प था कि वह कांग्रेस का हाथ थाम लें।
कस्वां पर आया राजनीतिक संकट अब राठौड़ की ओर मुड़ा
विधासनभा चुनावों में तारानगर से करारी हार ने राठौड़ को हिला डाला था। राठौड़ ने उस हार का ठीकरा कस्वां परिवार पर फोड़ भी दिया था और खुलेआम बयान भी दिए। अपनी हार का राजनीतिक बदला अपनी ही पार्टी के भीतर लेने के चलते राठौड़ ने राहुल कस्वां की टिकट कटवा दी। राठौड़ को लगा, इससे कस्वां परिवार की राजनीति चौपट हो जाएगी और कस्वां परिवार डाउन होते ही चुरू में भाजपा का सबसे बड़ा चेहरा राठौड़ ही बचते। लेकिन अब कांग्रेस का दामन थामने के बाद राहुल कस्वां ने बाजी पलट दी है। अब राठौड़ के लिए यहां की सीट निकलना ही इज्जत बचाने जैसा बचा है, अन्यथा राठौड़ की सत्ता यहां हिलने वाली है।
सप्ताहभर में बदल गए चुरू में मन
चुरू में जब से देवेन्द्र झाझडिय़ा को भाजपा का टिकट मिला है, जनता भी पलट गई है। अब यहां चुनाव देवेन्द्र झाझडिय़ा बनाम राहुल कस्वां नहीं रहा है बल्कि राजेन्द्र राठौड़ बनाम राहुल कस्वां हो गया है। देवेन्द्र की जीत, राठौड़ की जीत है और राहुल कस्वां की जीत, राठौड़ की हार। इसी थीम और विचार पर जनता कस्वां की तरफ झुक रही है। हालांकि देवेन्द्र पैराओलंपिक खिलाड़ी हैं और उनके प्रति स्थानीय जनता की सिम्पैथी है, लेकिन हालात यह हो गए है कि देवेन्द्र को अपने कार्यालय के उद्घाटन में सैकड़ों की संख्या में लोग हरियाणा से बुलाने पड़े ताकि भीड़ नजर आए। भाजपा के लोग ही देवेन्द्र के कार्यालय के उद्घाटन में नहीं पहुंचे थे। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि जिस तरह विधानसभा चुनाव में तारानगर की सीट सबसे हॉट सीट बन गई थी, उसी तर्ज पर अब चुरू का चुनाव राजस्थान की सभी 25 सीटों में सबसे शानदार और रोचक होने जा रहा है।
बहरहाल राहुल कस्वां के कांग्रेस थामने से कृष्णा पूनिया सरीखे युवा नेताओं को थोड़ा कॉम्प्रोमाइज करना पड़ सकता है और चुरू कांग्रेस में राहुल कस्वां से कम राजनीतिक अनुभव और वैचारिक मतभेदों के बावजूद कृष्णा पूनिया की सीनियरिटी रहेगी, लेकिन दोनों ही नेता एड्जस्ट कर गए तो, निश्चित ही चुरू की राजनीति में यह बड़ा बदलाव कहलाएगा।