जयपुर। वर्षों से फील्ड जमा रहे युवा और बुजुर्ग नेताओं के लिए चुनावी साल में आखरी महीने बेहद संवेदनशील होते हैं। उनकी पांच साल की मेहनत या उम्मीदों का सागर या तो उमड़ता है या फिर उसका बट्टा बैठ जाता है। टिकट वितरण के बाद हाथापाई की घटनाएं आम हैं। एक ही विधानसभा में एक ही की खेमेबाजी उजागर होती है। एक गुट प्रत्याशी को जिताने के काम में लग जाता है, तो दो से तीन गुट हरवाने में जुट जाते हैं। हरवाने वाले जानते हैं कि बंदा जीत गया, तो तुम्हारे पॉलिटिकल करियर की सबसे पहले जमानत जप्त होगी। फिर अगली बार नंबर किसका लगेगा कोई नहीं जानता।
यूथ कांग्रेस की कार्यकारिणी की बैठक में आज मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने दो महीने पहले टिकट वितरण की चर्चा छेड़ कर सबको सतर्क कर दिया है। अब युवा हों या बुजुर्ग नेता सभी टिकट के लिए गहलोत के आगे-पीछे फील्ड जमाने वाले हैं। इधर गहलोत ने टिकट केलिए दिल्ली के चक्कर काट-काट का जूता घिसाई पर भी लगे हाथ चर्चा कर ली। लगे हाथ 100 सीटों पर हारे नेताओं की नाकामी की ओर इशारा करते हुए गहलोत ने इससे तीन से चार गुना संभावित प्रत्याशियों की उम्मीदें बुलंद कर दी हैं। इस बात के चर्चे पहले ही हैं कि कांग्रेस के सिटिंग एमएलए और कई मंत्री जीतने की स्थिति में नहीं हैं। मतलब साफ है कि सवा सौ से 160 प्लस में गहलोत अपने जादू की फिरकी आज चंद बयानो से चला गए। इधर जगजाहिर है कि 2018 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के कमजोर टिकट वितरण से उठे विवाद में रामेश्वर डूडी जैसे उम्दा नेता की भेंट चढ़ गई थी। डूडी तब नेता प्रतिपक्ष थे और खुद को सुरक्षित करने के लिए डूडी ने कन्हैयालाल झंवर को कांग्रेस में शामिल करवाया था। लेकिन झंवर का टिकट कट गया और झंवर के टिकट विवाद में डूडी की भेंट चढ़ गई। 2018 में डूडी जीतते, न केवल अच्छे पोर्टफोलियो के मंत्री बनते, बल्कि आज राजस्थान की कांग्रेस में बेहद मजबूत सारथी की भूमिका में होते। हालांकि डूडी कद्दावर नेता हैं और अपना दम-खम बनाए हुए हैं, लेकिन उनकी हार ने न केवल डूडी बल्कि राजस्थान कांग्रेस को भी नुकसान हुआ।
अपने संबोधन में मुख्यमंत्री गहलोत ने यूथ कांग्रेस और पार्टी में जूझ रहे युवाओं की उम्मीदों को भी यह कहकर पंख दे दिए कि यूथ कांग्रेस को 10-12 सीटें मिलनी ही चाहिएं। इधर इस बात से भी सब वाकिफ है कि यूथ लीडरशिप सचिन पायलट के पीछे ज्यादा दिखाई देती है, वहीं बुजुर्ग नेताओं की लम्बी फेहरिस्त गहलोत के साथ खड़ी है। इस बार वैसे भी भतेरे बुजुर्ग विधायकों की टिकट कटने को तैयार है। ऐसे में देखने वाली बात होगी कि गहलोत का यह जादू एक्ट करेगा या रियेक्ट? रियेक्ट किया, तो पार्टी में टिकट वितरण के दौरान जिनको दरकिनार किया गया, 60 दिन में तो वह कैंडीडेट की जमकर कब्र खोद देंगे। ऐसे में न केवल पार्टी कैडीडेट को जोर लगाकर जीतने का मौका देगी, वहीं हरवाने वालों को भी हरवाने के लिए 60 दिन दे देगी, जो पर्याप्त हैं। मलतब यह शगूफा या तो सत्ता में जोरदार वापसी का ट्रंप कार्ड बनेगा या जमकर हरवाने में सपोर्ट करेगा।